CLASS 9th TEST SOLUTION HISTORY

 



CLASS 9th TEST SOLUTION HISTORY

03/11/2023


1). फ्रांस की राजक्रांति किस ई० में हुई ?
(क) 1776
(ख) 1789
(ग) 1776
(घ) 1832
उत्तर-
(ख) 1789

2). बैस्टिल का पतन कब हुआ?
(क) 5 मई, 1789
(ख) 20 जून, 1789
(ग) 14 जुलाई, 1789
(घ) 27 अगस्त, 1789
उत्तर-
(ग) 14 जुलाई, 1789

3). प्रथम एस्टेट में कौन आते थे?
(क) सर्वसाधारण
(ख) किसान
(ग) पादरी
(घ) राजा
उत्तर-
(ग) पादरी

4). द्वितीय एस्टेट में कौन आते थे?
(क) पादरी
(ख) राजा
(ग) कुलीन
(घ) मध्यमवर्ग
उत्तर-
(ग) कुलीन ।

5). तृतीय एस्टेट में इनमें से कौन थे?
(क) दार्शनिक
(ख) कुलीन
(ग) पादरी
(घ) न्यायाधीश
उत्तर-
(क) दार्शनिक

6). बोल्टेमर क्या था?
(क) वैज्ञानिक
(ख) गणितज्ञ
(ग) लेखक
(घ) शिल्पकार
उत्तर-
(ग) लेखक

7). रूसो किस सिद्धान्त का समर्थक था?
(क) समाजवाद
(ख) जनता की इच्छा
(ग) शक्ति पृथक्करण
(घ) निरंकुशता (General Will)
उत्तर-
(ख) जनता की इच्छा

8). मांटेस्क्यू ने कौन-सी पुस्तक लिखी?
(क) समाजिक संविदा
(ख) विधि का आत्मा
(ग) दास केपिटल
(घ) वृहत ज्ञानकोष
उत्तर-
(ख) विधि का आत्मा

9). फ्रांस की राजक्रांति के समय वहाँ का राजा कौन था ?
(क) नेपोलियन
(ख) लुई चौदहवाँ
(ग) लुई सोलहवाँ
(घ) मिराब्यो
उत्तर-
(ग) लुई सोलहवाँ

10). फ्रांस में स्वतंत्रता दिवस कब मनाया जाता है ?
(क) 4 जुलाई
(ख) 14 जुलाई
(ग) 21 अगस्त
(घ) 31 जुलाई
उत्तर-
(ख) 14 जुलाई

11). रिक्त स्थान की पूर्ति करें-

1. लुई सोलहवाँ सन् …………… ई० में फ्रांस की गद्दी पर बैठा।
2. …………… लुई सोलहवाँ की पत्नी थी। 3. फ्रांस की संसदीय संस्था को …………… कहते थे।
4. ठेका पर टैक्स वसूलने वाले पूँजीपतियों को …………… कहा जाता था।
5. …………. के सिद्धन्त की स्थापना मांटेस्क्यू ने की।
6. ………….. की प्रसिद्ध पुस्तक ‘सामाजिक संविदा’ है।
7. 27 अगस्त, 1789 को फ्रांस की नेशनल एसेम्बली ने …………… की घोषणा थी।
8. जैकोबिन दल का प्रसिद्ध नेता …………… था।
9. दास प्रथा का अंतिम रूप से उन्मूलन …………… ई० में हुआ।
10. फ्रांसीसी महिलाओं को मतदान का अधिकार सन् ……….. ई० में मिला।
उत्तर-
1.1774,
2. मेरी अन्तोयनेत,
3. स्टेट जेनरल,
4. टैक्सफार्मर,
5. शक्ति पृथक्करण,
6. रूसो,
7. मानव और नागरिकों के अधिकार,
8. मैक्समिलियन राब्स पियर,
9. 1848,
10. 1946

12). फ्रांस की क्रांति के राजनैतिक कारण क्या थे?
उत्तर-
फ्रांस की क्रान्ति के राजनैतिक कारण निम्नलिखित थे।
(i) निरंकुश राजशाही। (ii) राज-दरबार की विलासिता । (iii) प्रशासनिक भ्रष्टाचार। (iv) संसद की बैठक 175 वर्षों तक नहीं बुलाई गयी। (v) अत्यधिक केन्द्रीयकरण की नीति। (vi) स्वायत्त शासन का अभाव। (vii) मेरी अन्तोयनेत का प्रभाव।
इन्हीं कारणों से फ्रांस की राज्य क्रान्ति हुई।

13). फ्रांस की क्रांति के सामाजिक कारण क्या थे?
उत्तर-
फ्रांस में समाज तीन वर्गों में विभक्त था- (i) प्रथम एस्टेट में पादरी (ii) दूसरे एस्टेट में अभिजात वर्ग । (iii) तीसरे एस्टेट में सर्वसाधारण । प्रथम और द्वितीय वर्ग करों से मुक्त थे। फ्रांस की कुल भूमि का 40% इन्हीं के पास थी। 90 प्रतिशत जनता तीसरे एस्टेट में थी, जिनको कोई भी विशेषाधिकार प्राप्त नहीं था वे अपने स्वामी की सेवा घर एवं खेतों में काम करना । डाक्टर, वकील, जज, अध्यापक भी इसी वर्ग में थे। इन लोगों में भारी असंतोष था। यही वर्ग क्रांति का कारण बना।

14). क्रांति के आर्थिक कारणों पर प्रकाश डालें।
उत्तर-

  • फ्रांस की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी जिसे सुधारने के लिए वहाँ की जनता पर करों का बोझ लाद दिया गया था।
  • करों का विभाजन दोष पूर्ण था । प्रथम और द्वितीय वर्ग करों से मुक्त था, जबकि जनसाधारण को कर चुकाने पड़ते थे ।
  • किसानों पर भूमि पर, धार्मिक कर, सामन्ती कर आदि लगे थे। दैनिक उपभोग की वस्तुओं पर भी कर देने पड़ते थे।
  • औद्योगिक क्रांति शुरू होने से मशीनों का उपयोग शुरू हुआ और बेरोजगारों की संख्या बढ़ने लगी।
  • व्यापारियों पर अनेक तरह के कर लगाए गए थे। जैसे—गिल्ड की पाबन्दी, सामन्ती कर, प्रान्तीय आयात कर इत्यादि । इस कारण यहाँ का व्यापार का विकास नहीं हो पाया। ये सभी कारण क्रांति को प्रोत्साहित किया।

15). फ्रांस की क्रांति के बौद्धिक कारणों का उल्लेख करें।
उत्तर-
फ्रांसीसी क्रान्ति के विषय में कहा जाता है कि यह एक मध्यम वर्गीय क्रान्ति थी । फ्रांस की स्थिति बड़ी गंभीर थी इस स्थिति को समझने या स्पष्ट करने में दार्शनिकों ने बड़ा योगदान दिया। फ्रांस के अनेक दार्शनिक, विचारक और लेखक हुए । इन लोगों ने तत्कालीन व्यवस्था पर करारा प्रहार किया । जनता इनके विचारों से गहरे रूप से प्रभावित हुए और क्रांति के लिए तैयार हो गई। इनमें प्रमुख मांटेस्क्यू, वाल्टेयर और रूसो थे।

  • मांटेस्क्यू ने अपनी पुस्तक ‘विधि की आत्मा’ में सरकार के तीनों अंगों-कार्यपालिका, विधायिका एवं न्यायपालिका–को एक ही हाथ । में केन्द्रित नहीं होनी चाहिए ऐसा होने से शासन निरंकुश एवं स्वेच्छाचारी नहीं होगा। ऐसा बताकर उन्होंने शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त का पोषण किया।
  • रूसो पूर्ण परिवर्तन चाहते थे। उसने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘सामाजिक संविदा’ में जनमत को ही सर्व शक्तिशाली माना । अतः जनतंत्र का समर्थक था।
  • अन्य बुद्धिजीवी जिनमें ददरों प्रमुख थे । इन्होंने ‘वृहत ज्ञानकोष’ के लेखों से फ्रांस में क्रांन्तिकारी विचारों का प्रचार किया। फ्रांस के अर्थशास्त्रियों क्वेजनों एवं तुर्गों ने समाज में आर्थिक शोषण एवं नियंत्रण की आलोचना की और मुक्त व्यापार का समर्थन किया ।

16). ‘लेटर्स-डी-केचेट’ से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
लेटर्स-डी-केचेट’ से फ्रांस में बिना अभियोग के गिरफ्तारी वारंट होता था । फ्रांस में सभी तरह की स्वतंत्रताओं का अभाव था। भाषण, लेखन, विचार की अभिव्यक्ति तथा धार्मिक स्वतंत्रता का पूर्ण अभाव था । वहाँ राजधर्म कैथोलिक था और प्रोटेस्टेंट धर्म के मानने वालों को कठोर सजा दी जाती थी। ऐसे धर्मावलवियों को राजा बिना अभियोग के रिरफ्तारी वारंट देता था। उसे ही लेटर्स-द-केचेट (Letters-decachet) कहते थे।


17). अमेरिका के स्वतंत्रता संग्राम का फ्रांस की क्रांति पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर-
अमेरिका के स्वतंत्रता संग्राम का फ्रांस की क्रांति पर बहुत प्रभाव पड़ा। अमेरिका के स्वतंत्रता संग्राम में लफायते के नेतृत्व में फ्रांसीसी सेना ने इंग्लैण्ड के विरुद्ध युद्ध में भाग लिया था। उन्होंने वहाँ देखा था कि अमेरिका के 13 उपनिवेशों ने कैसे औपनिवेशिक शासन को समाप्त कर लोकतंत्र की स्थापना की थी। स्वदेश वापस लौटकर उनलोगों ने देखा कि जिन सिद्धान्तों की रक्षा के लिए वे अमेरिका में युद्ध कर रहे थे उनका अपने देश में ही अभाव था। वे सैनिक फ्रांस में क्रांति का अग्रदूत बनकर लोकतंत्र का संदेश फैलाने लगे । जनसाधारण पर इसका बहुत प्रभाव पड़ा अंत में वह फ्रांस की क्रान्ति का तात्कालिक कारण बन गया ।

18). ‘मानव एवं नागरिकों के अधिकार से’ आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
14 जुलाई, 1789 के बाद लुई सोलहवाँ नाम मात्र के लिए राजा बना रहा और नेशनल एसेम्बली देश के लिए अधिनियम बनाने लगी। इसी सभी एक महत्वपूर्ण उपलब्धि थी.27 अगस्त, 1789 को ‘मानव और नागरिकों के अधिकार’ (The Declaration of the rights of man and citizen)इसमें समानता, स्वतंत्रता, संपत्ति की सुरक्षा तथा अत्याचारों से मुक्ति के अधिकार को नैसर्गिक और अहरणीय’ माना गया । व्यक्तिगत स्वतंत्रता के साथ प्रेस एवं भाषण की स्वतंत्रता भी मानी गयी । अब राज्य किसी भी व्यक्ति को बिना मुकदमा चलाए गिरफ्तार नहीं कर सकता था। तथा मुआवजा दिए बिना उसके जमीन पर कब्जा नहीं कर सकता था। इन अधिकारों की सुरक्षा करना राज्य का दायित्व माना गया । मध्यम वर्ग के लिए सबसे महत्वूपर्ण घोषणाएँ थीं। 90% सामान्य जनता को उन समस्याओं से मुक्ति दिलाने का प्रयास किया गया जिनका सामना उन्हें निरंकुश राजशाही में करना पड़ता था।

19). फ्रांस की क्रांति का इंग्लैण्ड पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर-
फ्रांस की क्रान्ति का प्रभाव सिर्फ फ्रांस पर ही नहीं बल्कि यूरोप के अन्य देशों पर भी पड़ा । नेपोलियन फ्रांस में सुधार के कार्यों को करते हुए अपने विजय अभियान के दौरान जब इटली और जर्मनी आदि देशों में पहुँचा, तब उसे वहाँ की जनता भी ‘क्रांति का अग्रदूत’ कहकर स्वागत किया । इसने इन देशों के नागरिकों को राष्ट्रीयता का संदेश देने का कार्य किया। इंग्लैण्ड पर प्रभाव-नेपोलियन का विजय अभियान इंग्लैण्ड पर भी हुआ, क्रान्ति का इतना अधिक असर इंग्लैण्ड में दिखा कि वहाँ की जनता ने भी सामन्तवाद के खिलाफ आवाज उठानी शुरू कर दी । फलस्वरूप सन् 1832 ई० में इंग्लैण्ड में ‘संसदीय सुधार अधिनियम’ पारित हुआ; जिसके द्वारा वहाँ के जमींदारों की शक्ति समाप्त कर दी गयी और जनता के लिए अनेक सुधारों का मार्ग खुल गया । भविष्य में, इंग्लैण्ड में औद्योगिक क्रान्ति के विकास में इस क्रांति का बहुत योगदान रहा ।


20). फ्रांस की क्रांति ने इटली को प्रभावित किया, कैसे?
उत्तर-
फ्रांस की क्रान्ति ने इटली को बहुत प्रभावित किया । इटली इस समय कई भागों में बँटा हुआ था । फ्रांस की इस क्रान्ति के बाद इटली के विभिन्न भागों में नेपोलियन ने अपनी सेना एकत्रित कर लड़ाई की तैयारी की और ‘इटली राज्य’ स्थापित किया। एक साथ मिलकर युद्ध करने से उनमें राष्ट्रीयता की भावना का विकास हुआ और इटली में भावी एकीकरण का मार्ग प्रशस्त हुआ।


21). फ्रांस की क्रांति से जर्मनी कैसे प्रभावित हुआ?
उत्तर-
फ्रांस की क्रान्ति से जर्मनी भी अछूता नहीं रहा। जर्मनी भी उस समय छोटे-छोटे 300 राज्यों में विभक्त था, जो नेपोलियन के ही प्रयास से 38 राज्यों में सिमट गया । इस क्रान्ति में ‘स्वतंत्रता’, ‘समानता’ एवं ‘बन्धुत्व’ की भावना को जर्मनी के लोगों ने अपनाया और आगे चलकर इससे जर्मनी के एकीकरण करने में बल प्राप्त हुआ।


22). नेशनल एसेम्बली और नेशनल कन्वेंशन ने फ्रांस के लिए कौन-कौन से सुधार पारित किए ?
उत्तर-
(क) नेशनल एसेम्बली द्वारा किये गए सुधार इस प्रकार हैं-14 जुलाई, सन् 1789 के बाद लुई सोलहवाँ नाम मात्र का राजा रह गया और नेशनल एसेम्बली देश के लिए अधिनियम बनाने लगी।

  • 21 अगस्त, 1789 को ‘मानव और नागरिकों के अधिकार’ (The Declaration of the rights of Man and citizen) की स्वीकार कर लिया । इस घोषणा से प्रत्येक व्यक्ति को अपने विचार प्रकट करने और अपनी इच्छानुसार धर्मपालन करने के अधिकार का मान्यता मिली।
  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता-व्यक्तिगत स्वतंत्रता के साथ प्रेस पक्ष भाषण की स्वतंत्रता भी मानी गयी।
  • संवैधानिक राजतंत्र की स्थापना-एक संवैधानिक राजतंत्र की स्थापना हुई। अब राज्य में किसी भी व्यक्ति को बिना मुकदमा चलाये गिरफ्तार नहीं कर सकते थे, तथा मुआवजा दिए बिना उसके जमीन पर कब्जा नहीं कर सकते थे।
  • निजी सम्पत्ति का अधिकार-सभी नागरिकों को निजी सम्पत्ति रखने का अधिकार दिया गया ।
  • शक्ति पृथक्करण के सिद्धान्त को अपनाया गया। ये सभी घोषणाएँ अत्यधिक महत्वपूर्ण थी।
    (ख)नेशनल कन्वेंशन द्वारा किये गए सुधार-21 सितम्बर, 1792 को नव निर्वाचित एसेम्बली को कन्वेंशन नाम दिया गया। इस कन्वेंशन ने निम्नलिखित सुविधाएँ प्रदान की।
  • मतदान का अधिकार-21 वर्ष से अधिक उम्र वालों को मतदान का अधिकार मिला । चाहे उसके पास सम्पति हो या न हो।
  • गणतंत्र की स्थापना-कन्वेंशन का प्रमुख कार्य राजतंत्र का अंत कर फ्रांस में गणतंत्र की स्थापना करना । यह कार्य प्रथम अधिवेशन के पहले ही पूरा कर दिया गया ।

23) फ्रांस की क्रांति में जैकोबिन दल का क्या भूमिका थी?
उत्तर-
सन् 1791 ई० में नेशनल एसेम्बली ने संविधान का प्रारूप तैयार किया। इसमें शक्ति पृथक्करण के सिद्धान्त को अपनाया गया। यद्यपि लुई सोलहवाँ ने इस सिद्धान्त को मान लिया, परन्तु मिराव्या की मृत्यु के बाद देश में हिंसात्मक विद्रोह की शुरुआत हो गयी। इसमें समानता के सिद्धान्त की अवहेलना की गई बहुसंख्यकों को मतदान से वंचित रखा गया था सिर्फ धनी लोगों को ही यह अधिकार दिया गया । इस तरह बुर्जुआ वर्ग का प्रभाव बढ़ा इस बढ़ते असंतोष की अभिव्यक्ति नागरिक राजनीतिक क्लबों में जमा होकर करते थे। इन लोगों ने अपना एक दल बनाया जो ‘जैकोबिन दल’ कहलाया इन लोगों ने अपने मिलने का स्थान पेरिस के ‘कॉन्वेंट ऑफ सेंट जेक्ब’ को बनाया । यह आगे चलकर ‘जैकोबिन क्लब’ के नाम से जाना जाने लगा। इस क्लब के सदस्य थे-छोटे दुकानदार, कारीगर, मजदूर आदि । इसका नेता मैक्स मिलियन रॉब्सपियर था। इसने 1792 ई० में खाद्यानों की कमी एवं महंगाई को मुद्दा बनाकर जगह-जगह विद्रोह करवाए ।

जैकोबिन के कार्य-रॉब्सपियर वामपंथी विचारधारा का समर्थक था। इसने आंतक का राज्य स्थापित किया चौदह महीने में लगभग 17 हजार व्यक्तियों पर मुकदमे चलाये गए और उनहें फाँसी दे दी गई।

प्रत्यक्ष प्रजातंत्र का पोषक रॉब्सपियर प्रजातंत्र का पोषक था । 21 वर्ष से अधिक उम्र वालों को मतदान का अधिकार देकर, चाहे उनके पास सम्पत्ति हो या न हो, चुनाव कराया गया । 21 सितम्बर, 1792 ई० को नव निर्वाचित एसेम्बली को कन्वेंशन नाम दिया गया तथा राजा की सत्ता को समाप्त कर दिया गया । देशद्रोह के अपराध में लुई सोलहवाँ पर मुकदमा चलाया गया और 21 जनवरी, 1793 ई० को उन्हें फाँसी पर चढ़ा दिया गया।

रॉब्सपियर का अंत-रॉब्सपियर का आतंक राज्य 1793 ई० तक उत्कर्ष पर था । राष्ट्र का कलेन्डर 22 सितम्बर, 1792 को लागू किया गया । इन सभी को रॉब्सपीयर ने सर्वोच्च सता की प्रतिष्ठा के रूप में स्थापित किया लेकिन सभी अस्थाई सिद्ध हुए । उनकी हिंसात्मक कार्रवाइयों की वजह से विशेष न्यायालय ने जुलाई 27, 1794 को उसे मृत्यु दंड दिया गया । इस तरह ‘जैकोबिन का फ्रांस की क्रान्ति पर प्रभाव देखने को मिलता है।










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